17वीं बाल-विज्ञान कोंग्रेस के उद्घाटन के अवसर पर नरेन्द्र मोदी का उद्बोधन

Place :सायंस सिटी, अहमदाबाद.
Speech Date :27-12-2009
बच्चों में वैज्ञानिक मनोदशा विकसित हो-मुख्यमंत्रीजी का आहवान.
मुख्यमंत्रीजी के द्वारा बच्चों को विज्ञान का अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहन.
बच्चें अपने आसपास की चीजों को सिर्फ देखें tही नहीं बल्कि अवलोकन करना भी सीखें.
यहाँ पर विराजमान भारत के उपराष्ट्रपति आदरणीय श्री हमीद अँसारीजी, महामहिम राज्यपाल महोदया डॉ. कमलाजी, समग्र देश के ऋषितुल्य विज्ञानगुरु श्रद्धेय यशपालजी, देश-विदेश से आए हुए सभी बाल-वैज्ञानिक, अभिभावक, शिक्षकमित्रों, भाईयों और बहनों, गुजरात की धरती पर आप सभी का स्वागत है.
गाँधी और सरदार की इस भूमी पर डॉ.विक्रम साराभाई जैसे वैज्ञानिक, यशपालजी और डॉ. अब्दुल कलामजी को सेवा करने का अवसर मिला है वैसी धरती पर मै आप सबका, देशभर से आए बच्चों का बडे मन से स्वागत करता हूँ.
मानव-जीवन की विकास-यात्रा और हमारी ज्ञान-यात्रा वेद से प्रारम्भ होकर वेब तक पहुँची है. वेद से वेब तक मानव-जीवन की इस ज्ञान-पिपासा की यह यात्रा अविरत चलती रही है. बालक मन हर पल कुछ-न-कुछ खोजता रहता है. बालक मन हमेशा जिज्ञासाओं से भरा हुआ होता है और बालक के विकास का स्रोत भी उसी में है. जिस बालक को जिज्ञासा नहीं, उस बालक को घटना के पीछे क्या घट रहा है - यह जानने की उमंग, उत्साह, प्रयास नहीं होता है. तो हम कह सकते है कि उस बालक का मन जानकारियाँ तो चाहता है, ज्ञान का परिचय तो कर लेता है, लेकिन विज्ञान की तह तक पहुँचने का प्रयास नहीं करता है. आज बालकों को यह तय करना है कि हमें जानकारीयों तक सीमित रहना है, ज्ञान का परिचय प्राप्त करके सीमित रहना है या फिर घटनाओं की गहराईयों तक जाकर के उसमें निहित वैज्ञानिक तथ्यों को जानने का प्रयास करना है.
बहुत सारे बालक ऐसे होते हैं जो घर में लाए गए किसी भी खिलौने को तोड-फोड़कर रख देते है. महौल्ले वाले और माँ-बाप सब यह मानते है कि बच्चा शरारती है इसलिए नया-नया खिलौना लाए और उसने तोड दिया. परंतु वास्तव में वह शरारती नही है. हकीकत में, उसके भीतर जिज्ञासा जागृत होती है और वो देखना चाहता है कि खिलौना ऐसे कैसे कर रहा है? वो तोडकर उसे देखने और समझने की कोशिश करता है. शायद ही दुनिया का ऐसा कोई वैज्ञानिक होगा जिसने बचपन में कोई खिलौना ना तोडा हो!! यदि उसके पास घड़ी भी आएगी तो वो चाहेगा कि उस घड़ी को खोल दूँ. यह जानूँ कि वह घडी काम कैसे करती है?
कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें यदि शिक्षक बता दे “32 दाँत” होते हैं तो वह उसे रटता रहता है. परीक्षा में वह लिख देता है कि 32 दाँत होते हैं. लेकिन कोई बच्चा ऐसा होता है जो पहले अपनी जीभ से गिनने लग जाता है कि दाँत 32 हैं कि नहीं है! यदि कम है तो वह सवाल पूछता है कि मेरे तो 32 दाँत नही है. कोई बच्चा ऐसा होता है जो उससे भी आगे जाता है – वो कहता है कि सारे आकार अलग क्यों है? एक दाँत जैसा ही दूसरा दाँत क्यों नहीं है? और जब तक वो एक के बाद एक सवाल पूछता जाता है तब तक वो विज्ञान के निकट पहुँचता रहता है.
मित्रों, प्लुटो और सोक्रेटिस के बीच सँवाद की एक बडी मजेदार घटना है. सोक्रेटिस कहते है कि विज्ञान की पहली शुरुआत होती है, सही सवाल पूछ्ने की ताक़त में. बालक को सही सवाल पूछने के लिए कौन प्रोत्साहित करेगा? मैं भी, बच्चों के द्वारा आयोजित इस विज्ञान प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए गया था. यशपालजी साथ-साथ चल रहे थे. यशपालजी के लिए विज्ञान के नियम नए नहीं हैं, और ना ही विज्ञान के नियमों के आधार पर बनाए गए उपकरण. लेकिन मैं देख रहा था कि एक बालक की तरह वे सब बालकों से सवाल पूछ रहे थे. अरे बताओ बच्चे, तुमने यह क्या बनाया है? कैसे बनाया है? कौन-सा सिद्धांत काम कर रहा है? फिर उसमें contradictions भी खडा कर देते थे. और उसको प्रेरित करते थे - सवाल समझने के लिए. मै समझता हूँ, यशपालजी वहाँ यह नहीं कह रहे थे कि देखो, मैं यह जानता हूँ, तुमने यह किया, वो किया – नहीं, वे ऐसा नहीं कर रहे थे. वे उसकी जिज्ञासा को बढावा दे रहे थे. एक catalyst agent के रूप में उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पनपाने के लिए कौन-सा रास्ता सही हो सकता था, वो रास्ता तय करने की कोशिश कर रहे थे.
मित्रों, कुछ लोग तकनीक को ही विज्ञान मान लेते हैं. मैं समझता हूँ, वो विज्ञान का आउटकम है, विज्ञान का एक निर्माण है, जिसका हम अपने जीवन के उद्यम के लिए काम में लाते है. उसके गुढ अर्थ तक जाने के लिए अवलोकन करने का सामर्थ्य होना चाहिए. आम तौर पर हम चीजों को देखते हैं परंतु अवलोकन नहीं करते. फल गिरते हुए सबने देखा होगा, लेकिन न्यूटन ने उसका अवलोकन किया था. और तब जाकर गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत का जन्मदाता बना था. और इसलिए यह जरूरी है कि हमारा मन चीजों को सिर्फ देखता है, या उन चीजों का अवलोकन करता है.
मुझे स्मरण है एक सत्य घटना का. एक बार एक वैज्ञानिक एक कोलेज में गए. M.Sc. के छात्र बैठे थे. उन्होंने उनके सामने छोटा-सा एक प्रयोग किया. वैज्ञानिक बनने का सही तरीक़ा क्या हो सकता है, उसका पहला पाठ पढाने की उन्होंने कोशिश की. उन्होंने एक छात्र से कहा कि देखो यह टेस्ट-ट्युब मैं लाया हूँ, इसको लेकर बाथरूम में जाओ और उसमें अपना मूत्र भरकर ले आओ. मै एक प्रयोग दिखाना चाहता हूँ. छात्र टेस्ट-ट्युब लेकर बाथरूम में चला गया और मूत्र भरकर ले आया और उस ट्यूब को वैज्ञानिक के हाथ में दे दिया. वैज्ञानिक ने, वो लडका जो मूत्र भर कर लाया था, उसमें अपनी उँगली डूबो दी. सब बच्चे देखते रह गए कि यह कैसा वैज्ञानिक है जो दूसरों के मूत्र में अपनी उँगली डालता है!!
यह कैसा वैज्ञानिक है!! फिर, उन्होंने क्या किया?! वह उँगली अपने मूँह में डाल दी. तो सबको ऐसा लगा कि यह कितना गंदा आदमी है!! फिर उन्होंने कहा कि आपको अच्छा नहीं लगा ना? सब छात्रों ने कहा कि हाँ, अच्छा नहीं लगा. तब वो बोले मुझे भी अच्छा नहीं लगा!! क्यों? आपने मुझे देखा परंतु मेरा अवलोकन नहीं किया. मैने मूत्र में यह उँगली डूबोई थी, मगर मुँह में दूसरी उँगली डाली थी. यह आपने ओब्सर्व नहीं किया.
वैज्ञानिक ने बच्चों को सरलता से समझा दिया कि हम कभी-कभी चीजों को देखते हैं, ओब्सर्व नहीं करते हैं. वैज्ञानिक बनने की पहली शर्त होती है - ओब्सर्व करने की आदत विकसित हो. पहली शर्त होती है हम जिज्ञासा के साथ नए-नए सवालों को सही तरीक़े से पूछें. और जब तक हम बच्चों को सही सवाल पूछ्ने की दिशा में नहीं ले जाते, तब तक वो सही जवाब तक नही पहुँच पाता. अगर पूरी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो कि उसकी सही सवाल पूछने की ताक़त बढे, उसकी सटिक सवाल पूछने की ताक़त बढे और वह उसको उतना प्रेरित करे, वो बाल मन वैज्ञानिक मन बनता जाएगा और विज्ञान को समझने की कोशिश करने लगेगा.
मित्रों, कभी-कभी हम विज्ञान का अभ्यास तो करते हैं, विज्ञान के सिद्धांतों को जानते है, लेकिन हम कभी भी यह कोशिश नहीं करते कि हमारी मनोदशा वैज्ञानिक बने. हर चीज को वैज्ञानिक तराजु से तोलने की मनोदशा होनी चाहिए. अगर वैज्ञानिक तरीके से तोलने की मनोदशा नहीं है तो हम विज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात नहीं कर सकते है. और इसीलिए विज्ञान को समझना जितना ज़रूरी है, उससे अधिक आवश्यक है – हर चीज को हमारे वैज्ञानिक मनोदशा की कसौटी से निकालने की आदत बन जाए. अगर इसको हम करते हैं तो स्थितियों को काफी बदल सकते हैं.
मुझे विश्वास है कि जब यहाँ पृथ्वी, इस विषय को लेकर यह सभी बाल वैज्ञानिक एकत्र हुए है: हमारे यहाँ शास्त्रों में कहा गया है कि ‘माता: पृथ्वी: पुत्रोहम'- हम सभी पृथ्वी माता के पुत्र हैं. जब हम पृथ्वी की बात करते है तो वेदकाल से हम सुनते आये है कि पृथ्वी पांच तत्वों से बनी हुई है. जल, वायु, आकाश, अग्नि, धरती. और उन पांच तत्वों का संतुलन पृथ्वी को बनाए रखता है, मानवजाति को बनाए रखता है. आज उसी पृथ्वी पर संकट आ गया है. जिस पृथ्वी ने हमें धारण किया, उसी पृथ्वी पर संकट आया है. और आज उसके कारण पुरुषा-पुरुष चिंतित है. इस संकट को पैदा करनेवाले लोग कौन है? यह राजनेता तय करेंगे. लेकिन इस संकट के उपाय क्या है, वह बाल-वैज्ञानिक तय करेंगे. और मुझे विश्वास है कि बाल वैज्ञानिक उन रास्तों को खोजेंगे. पृथ्वी मैया पर जो संकट आया है, पूरी मानव-जाति को बचाने का जो काम आया है - आनेवाली पीढी के वैज्ञानिक उसको समझकर, उस खोज को पाकर रहेंगे. इस सायंस सिटी में हमारा एक पैवेलियन पृथ्वी से जुडा हुआ है. और उसका जो लोगो बना है, उसी लोगो को इस सेमिनार में स्वीकृत किया गया है. मैं इसके लिए संयोजक मित्रों का अभिनंदन करता हूँ और मैं फिर एक बार आप लोगों के बीच आनेवाला हूँ. विशेषकर के देशभर से आए हुए बालकों के लिए.
मित्रों, आमतौर पर, शासन व्यवस्था में बडे-बडे मेहमान जब आते है, तब उनके लिए ‘हाई-टी' रखी जाती है. उनके भोज समारोह रखे जाते हैं. मेरे लिए ये जो बच्चें आए हुए हैं वे सबसे बड़े मेहमान है और इसलिए मैने उनके लिए एक हाई-टी रखी है. मैं खुद आनेवाला हूँ. सब बच्चों के साथ घंटे दो घंटे बितानेवाला हूँ और काफी गपशप भी करूंगा. यह जानने की कोशिश करुंगा कि उनका मन-मन्दिर किस दिशा में चल रहा है. उसको स्पर्श करने की मैं कोशिश करुंगा. मैं आदरणीय उपराष्ट्रपतिजी का बहुत आभारी हूँ कि इस महत्वपूर्ण प्रसंग पर हम सबका मार्गदर्शन करने के लिए पधारे हैं. मित्रों, इन दिनों हमारे लिए यह बडे सौभाग्य की बात है कि कोई सप्ताह ऐसा नहीं होता है कि जब गुजरात की धरती पर कहीं न कहीं, कोई न कोई नेशनल, इंटरनेशनल ईवेंट न होता हो. आज गुजरात में कहीं भी चले जाईए- किसी न किसी कोने में, कोई न कोई नेशनल, इंटरनेशनल ईवेंट इन सर्दिओं के दिनों में लगातार चल रहे हैं. मित्रों, गुजरात एक तरह से सबके लिए आकर्षण का, जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ है. यहाँ जो छात्र आए हुए है, उनसे मैं एक छोटी सी प्रार्थना करना चाहता हूँ. यहाँ एक दैनिक अखबार निकलता है. उस अखबार के आज के संस्करण में, जो यहाँ सायंस सिटी के लिए बना है, में एक सिक्स्थ सेंस कैमरा की चर्चा है. प्रणव मिस्त्री, गुजरात का ही एक बच्चा है जिसने यह खोज की है. मेरी सब बच्चों से प्रार्थना है कि आप यू-ट्युब पर जाकर प्रणव मिस्त्री के चैनल को देखिए. आप ज़रूर जाईए, आप देखिए. एक-दो साल के भीतर ही भीतर पूरा कम्प्युटर विश्व कैसे बदलने वाला है. कौन-सी नई टेक्नोलोजी आनेवाली है, शायद आपने सोचा तक नहीं होगा. आप ज़रूर उसको देखिए. मैं हमारे मित्रों को कहता हूँ यहाँ पर जो स्क्रीन लगे हैं, उन पर, प्रणव मिस्त्री जिसने यह जो नई खोज की है, उसको देखेंगे. हो सकता है, आपके लिए वह बहुत उपयोगी हो.
फिर एक बार आप सबका स्वागत करते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ.
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